बिन्देश्वरी प्रसाद मण्डल (बी.पी. मण्डल)
● बिहार के समाजवादी नेता बी. पी. मंडल का जन्म 25 अगस्त, 1918 को बिहार के मधेपुरा में हुआ।● मण्डल वर्ष 1967-1970 तथा वर्ष 1977-1979 में बिहार से सांसद चुने गए।
● उन्होंने द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग की अध्यक्षता की तथा इस आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने की सिफारिश की। मण्डल वर्ष 1968 में डेढ़ माह तक बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे।
● वे वर्ष 1977 में जनता पार्टी में शामिल हुए।
● मंडल आयोग का गठन मोरारजी देसाई की सरकार के समय 1 जनवरी, 1979 को हुआ और इस आयोग ने इंदिरा गाँधी के कार्यकाल के दौरान 31 दिसंबर, 1980 को रिपोर्ट सौंपी।
13 अप्रैल, 1982 को मण्डल का निधन हो गया।
मंडल आयोग
● मंडल आयोग का गठन भारतीय समाज के विभिन्न तबकों के बीच शैक्षिक और सामाजिक पिछड़ेपन की व्यापकता का पता लगाने और इन पिछड़े वर्गों की पहचान करने तथा इन वर्गों के पिछड़ेपन को दूर करने के उपाय सुझाने के तरीके बताने के लिए किया गया था।
● आयोग ने वर्ष 1980 में अपनी सिफारिशें पेश की। इस वक्त तक जनता पार्टी की सरकार गिर चुकी थी। आयोग का मशविरा था कि पिछड़ा वर्ग को पिछड़ी जाति के अर्थ में स्वीकार किया जाए, क्योंकि अनुसूचित जातियों से इतर ऐसी अनेक जातियाँ हैं, जिन्हें वर्ण व्यवस्था में 'नीच' समझा जाता है।
● आयोग ने एक सर्वेक्षण किया और पाया कि इन पिछड़ी जातियों की शिक्षा संस्थाओं तथा सरकारी नौकरियों में बड़ी कम मौजूदगी है। इस वजह से आयोग ने इन समूहों के लिए शिक्षा संस्थाओं तथा सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत सीट आरक्षित करने की सिफारिश की। मंडल आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्ग की स्थिति सुधारने के लिए कई और समाधान सुझाए जिनमें भूमि सुधार भी एक था।
● अगस्त, 1990 में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों में से एक को लागू करने का फैसला किया।
● यह सिफारिश केंद्रीय सरकार और उसके उपक्रमों की नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के संबंध में थी। सरकार के फैसले से उत्तर भारत के कई शहरों में हिंसक विरोध का स्वर उमड़ा।
● इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में भी चुनौती दी गई और यह प्रकरण ‘इंदिरा साहनी केस' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सरकार के फैसले के खिलाफ अदालत में जिन लोगों ने अर्जी दायर की थी, उनमें एक नाम इंदिरा साहनी का भी था।
● नवंबर, 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के निर्णय को सही ठहराते हुए अपना फैसला सुनाया। राजनीतिक दलों में इस फैसले के क्रियान्वयन के तरीके को लेकर कुछ मतभेद था। बहरहाल अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के मसले पर देश के सभी बड़े राजनीतिक दलों में सहमति थी।
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