जलियाँवाला बाग हत्याकांड
● आज से 104 वर्ष पूर्व 13 अप्रैल, 1919 को जलियाँवाला बाग में आयोजित एक शांतिपूर्ण बैठक में शामिल लोगों पर ब्रिगेडियर जनरल रेगीनॉल्ड डायर ने गोली चलाने का आदेश दिया था, जिसमें हजारों निहत्थे पुरुष, महिलाएँ और बच्चे मारे गए थे।● ये लोग ‘रॉलेट एक्ट’ 1919 का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे।
● 10 मार्च, 1919 को इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा एक और शोषणकारी कानून ‘रॉलेट एक्ट’ पास किया गया। इस कानून के मुताबिक ब्रिटिश सरकार किसी भी व्यक्ति को देशद्रोह की आड़ में बिना वॉरण्ट के गिरफ्तार कर सकती थी; प्रेस पर सेंसरशिप लगा सकती थी और नेताओं को बिना मुकदमे के जेल में रख सकती थी।
● महात्मा गाँधी इस तरह के अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करना चाहते थे, जो 6 अप्रैल, 1919 को शुरू हुआ।
● 9 अप्रैल, 1919 को पंजाब में दो राष्ट्रवादी नेताओं सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल को ब्रिटिश अधिकारियों ने बिना किसी वॉरण्ट के गिरफ्तार कर लिया।
● इससे भारतीय प्रदर्शनकारियों में आक्रोश पैदा हो गया जो 10 अप्रैल को हजारों की संख्या में अपने नेताओं के साथ एकजुटता दिखाने के लिए निकले थे।
● भविष्य में इस प्रकार के किसी भी विरोध को रोकने हेतु सरकार ने मार्शल लॉ लागू किया और पंजाब में कानून व्यवस्था ब्रिगेडियर-जनरल डायर को सौंप दी गई।
● 13 अप्रैल, बैसाखी के दिन अमृतसर में निषेधाज्ञा से अनजान ज्यादातर पड़ोसी गाँव के लोगों की एक बड़ी भीड़ जलियाँवाला बाग में जमा हो गई।
● ब्रिगेडियर-जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ घटनास्थल पर पहुँचा। सैनिकों ने जनरल डायर के आदेश के तहत सभा को घेर कर एकमात्र निकास द्वार को अवरुद्ध कर दिया और निहत्थे भीड़ पर गोलियाँ चला दीं, ब्रिटिश सरकार द्वारा किए गए इस निर्मम दमन के कारण लगभग 1000 लोग मारे गए। इस दौरान मरने वालों में युवा, महिलाएँ, वृद्ध, बच्चे सभी उम्र के लोग शामिल थे।
● इतिहासकार ए.पी.जे. टेलर ने जलियाँवाला बाग हत्याकांड की घटना के विषय में लिखा कि “जलियाँवाला बाग जनसंहार भारतीय इतिहास में एक ऐसा निर्णायक मोड़ था कि इसके बाद भारत के लोग ब्रिटिश शासन से अलग हो गए।”
● इस घटना के विरोध में बांग्ला कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1915 में प्राप्त नाइटहुड की उपाधि का त्याग कर दिया।
● जलियाँवाला बाग हत्याकांड की जाँच के लिए गठित किए गए हंटर आयोग में तीन भारतीय सदस्यों को भी शामिल किया गया था। इस आयोग में शामिल तीन भारतीय सदस्य थे- बॉम्बे विश्वविद्यालय के उप कुलपति और बॉम्बे उच्च न्यायालय के अधिवक्ता सर चिमनलाल, हरिलाल सीतलवाड़, संयुक्त प्रांत की विधायी परिषद् के सदस्य और अधिवक्ता पंडित जगत नारायण और ग्वालियर राज्य के अधिवक्ता सरदार साहिबजादा सुल्तान अहमद खान।
● हंटर आयोग ने ब्रिटिश सरकार को अपनी जो रिपोर्ट सौंपी, उसमें डायर के कृत्य की निंदा तो की गई थी, लेकिन उसके विरुद्ध किसी भी प्रकार की दंडात्मक या अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा नहीं की थी।
● इसके अलावा, ब्रिटिश सरकार ने अपने अधिकारियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए ‘क्षतिपूर्ति अधिनियम’ (इंडेमनिटी एक्ट) भी पारित कर दिया था। इस अधिनियम को ‘व्हाइट वॉशिंग बिल’ कहा गया था।
● वर्ष 1940 में सरदार उधम सिंह ने जनरल ओ. डायर की हत्या कर दी थी।
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