हिंदी पखवाड़ा के अंतर्गत उच्चतर शिक्षा में पढ़ाई का माध्यम हिन्दी विषय पर विचार गोष्ठी आयोजित -
जवाहर नवोदय विद्यालय थांदला के प्रागंण में हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में उच्चतर शिक्षा में पढ़ाई का माध्यम हिन्दी विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमे विद्यालय के अरावली,नीलगिरी ,शिवालिक और उदयगीरी सदन के लगभग 50 बच्चो ने शिक्षा का माध्यम हिन्दी हो या दूसरी भाषा हो के पक्ष और विपक्ष पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इस कार्यक्रम में छात्र अथर्व जायसवाल, जय नमन, तेजस,पूजा, आयुष देवल, दिव्यत्ता देवराज ,यश भरपोड़ा, ध्रुव पाटीदार,आदित्य गौड़, महक नायक, हितेषी नायक ने अपने विचार प्रमुखता से रखे जिनके बातों से निम्न निष्कर्ष निकले की अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा के अपने कुछ फायदे है और कुछ नुकसान। यही बात अन्य भारतीय भाषाओं पर भी लागू होती है। ऐसी स्थिति में हमें देखना चाहिए कि किसके नुकसान कम हैं और फायदे ज्यादा। साथ ही हमारी अपेक्षाओं की पूर्ति किस माध्यम से पूरी होंगी। शिक्षा का जो माध्यम हमारी सोच, हमारे समाज के आदर्श और हमारी जरूरतों के अनुरूप हो उसे ही अपनाना चाहिए।
इस आधार पर विदेशी भाषा के मुकाबले अपनी मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करना अधिक लाभदायक और उचित है। शिक्षा का एक अहम् उद्देश्य है मानव में नैतिक मूल्य का बीजारोपण करना। चूंकि नैतिक मूल्य संस्कृति से आते हैं, और संस्कृति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण वाहन उस संस्कृति की भाषा है। इसलिए जिस संस्कृति को हम बच्चों के लिए उचित मानते हैं उस संस्कृति को सम्पूर्णता से व्यक्त करने वाली भाषा ही शिक्षा का माध्यम होनी चाहिए। अंग्रेजी शिक्षा से पाश्चात्य संस्कृति बच्चों में पनपेगी और भारतीय भाषाओं में दी गई शिक्षा से भारतीय संस्कृति बच्चों पर अपना असर डालेगी। विद्यालय प्राचार्या भावना शेल्के ने बताया कि
पाश्चात्य संस्कृति से भारतीय संस्कृति लाख गुना बेहतर है क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति सुख का भ्रम देती है और भारतीय संस्कृति सच्चा सुख देती है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हम ऐसी श्रेष्ठ संस्कृति खो रहे हैं क्योंकि हम उस संस्कृति के वाहक अपनी मातृभाषाओं को छोड़ कर भोगवादी भाषा अंग्रेजी अपना रहे हैं। इस कार्यक्रम का सफल आयोजन हिंदी विभाग प्रमुख मनीषा शास्त्री , शिव शंकर गौड़ और गोपाल पाटीदार द्वारा किया गया तथा धन्यवाद ज्ञापन संतोष कुमार चौरसिया द्वारा किया गया।















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