दादाभाई नौरोजी
“मैं धर्म और जाति से परे एक भारतीय हूँ।“
▪️दादाभाई नौरोजी का जन्म 4 सितंबर, 1825 को बम्बई में हुआ था।
▪️नौरोजी की माता का नाम मानिकबाई व पिता नौरोजी पालनजी डोरडी था।
▪️नौरोजी की प्रारंभिक शिक्षा एक प्राथमिक विद्यालय में हुई। उनके एक शिक्षक की सलाह पर दादाभाई को माध्यमिक शिक्षा के लिए एल्फिन्स्टन इंस्टीट्यूट (अब एल्फिन्स्टन कॉलेज), बम्बई भेज दिया गया जहाँ पर उनका विद्यार्थी-जीवन प्रतिभा से परिपूर्ण रहा तथा उन्होंने वर्ष 1840 में प्रतिष्ठित क्लेयर छात्रवृत्ति सहित अनेक छात्रवृत्तियाँ और पुरस्कार प्राप्त किए।
▪️वर्ष 1916 में बम्बई विश्वविद्यालय ने दादाभाई को एलएल. डी. की मानद उपाधि से सम्मानित किया।
▪️वर्ष 1861 में दादाभाई नौरोजी ने लन्दन जोरोस्ट्रियन एसोसिएशन की स्थापना की।
▪️वर्ष 1865 में उन्होंने लन्दन इंडिया सोसायटी की स्थापना की तथा इसके अध्यक्ष बने और 1907 तक इस पद पर रहे। उन्होंने 1 दिसम्बर, 1866 को द ईस्ट इंडिया एसोसिएशन, लन्दन की स्थापना की और इसके सचिव बने।
▪️जनवरी 1885 में, जब 'बॉम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन' की स्थापना हुई, तब वह उसके उपाध्यक्ष चुने गए।
▪️अगस्त, 1885 में दादाभाई नौरोजी गवर्नर लॉर्ड रिपन के निमंत्रण पर बम्बई विधान परिषद् के सदस्य बने।
▪️उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना करने में अग्रणी भूमिका निभाई तथा तीन बार अर्थात् 1886, 1893 और 1906 में उसके अध्यक्ष बने।
▪️1892 में सेन्ट्रल फिन्सबरी निर्वाचन क्षेत्र से ब्रिटेन की संसद के सदस्य निर्वाचित हुए और इस प्रकार वह ब्रिटेन की संसद में चुने जाने वाले पहले भारतीय बने।
▪️दादाभाई द्वारा संसदीय क्षेत्र में किए गए श्रम के परिणामत: उन्होंने ब्रिटेनवासियों को धनसंपदा के 'निर्गमन' का सिद्धांत समझाया। यह ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध उनका आरोप था और उन्होंने इसकी जाँच करने के लिए तत्काल एक 'रॉयल कमीशन' नियुक्त करने की माँग की। इसके परिणामस्वरूप, ब्रिटिश शासन ने 1895 में भारतीय व्यय संबंधी "रॉयल कमीशन" की नियुक्ति की।
▪️दादाभाई नौरोजी ऐसे पहले भारतीय थे जिन्हें रॉयल कमीशन में बतौर सदस्य शामिल किया गया था। बाद में उनका 'निर्गमन सिद्धांत' (ड्रेन थ्योरी) 'पॉवर्टी एंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया' शीर्षक से पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ।
▪️वर्ष 1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता में हुए अधिवेशन में दादाभाई के भाषण का प्रमुख विषय ‘स्वराज’ था।
▪️उन्होंने "ज्ञान प्रसारक" पत्रिका का सम्पादन किया तथा उन्होंने 1878 में ‘पार्टी ऑफ इंडिया’ नामक एक पुस्तिका प्रकाशित की।
▪️वर्ष 1883 में उन्होंने बम्बई में ‘वॉयस ऑफ इंडिया’ शुरू किया और बाद में इसे "इंडियन स्पेक्टेटर" में शामिल कर लिया। उन्होंने 1889 में अपने कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर एक गुजराती साप्ताहिक पत्रिका "रास्त गोफ्तार" (सत्यवादी) निकाली जो अपने उच्च और प्रगतिशील विचारों के लिए विख्यात थी।
▪️नौरोजी 'धन निष्कासन' सिद्धान्त के प्रतिपादक थे।
▪️नौरोजी के इसी योगदान के कारण इन्हें 'भारत का महान युगपुरुष' और 'भारतीय राष्ट्रवाद का जनक' कहते थे।
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