मुहणौत नैणसी
❖ मुहणौत नैणसी का जन्म 1610 में जोधपुर में हुआ था। इनके पिता का नाम जयमल था।
❖ वह जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह (1638 – 78 ई.) के समकालीन थे।
❖ नैंणसी को 1658 में जोधपुर राज्य का दीवान बनाया गया, दीवान के पद पर रहते हुए नैणसी ने चारणों, बडवा भाटों आदि से विभिन्न वंशों तथा राज्यों का इतिहास संगृहीत किया।
❖ शासकीय दस्तावेज भी उसके अधिकार में थे। इन सब स्रोतों के आधार पर उसने ख्यात की रचना की। जिसकी तुलना अबुल फजल के अकबरनामा से की जाती हैं।
❖ नैणसी ने अपनी ख्यात में मध्यकालीन राजस्थान के सभी राज्यों के अतिरिक्त गुजरात, काठियावाड़, कच्छ, बघेलखंड, बुंदेलखंड आदि राज्यों का इतिहास तथा मुगल राजपूत सम्बन्धों का वर्णन दिया हैं।
❖ नैणसी ने मध्यकालीन राजस्थानी समाज और संस्कृति के साथ साथ मन्दिरों, मठों, दुर्गों आदि के निर्माण भेंट, पूजा, बलि इत्यादि प्रकार तीर्थ यात्राओं तथा उनके महत्त्व का विवेचन, सगाई विवाह आदि रस्मों का वर्णन, रीति-रिवाज, पर्व, त्योहारों आदि का भी उल्लेख किया हैं।
❖ “नैणसी री ख्यात” में नगर कस्बों तथा गाँवों के इतिहास वर्णन के साथ-साथ वहाँ की भौगोलिक स्थिति तथा स्थापत्य का वर्णन भी मिलता है।
❖ नैणसी की दूसरी रचना “मारवाड़ रा परगना री विगत” है, जिसमें मारवाड़ राज्य के परगनों की राजस्व व्यवस्था तथा राज्य की आय अनेक स्रोतों का वर्णन हैं।
❖ मुंशी देवीप्रसाद ने मुहणौत नैणसी को राजपूताने का ‘अबुल फजल’ कहा है।
❖ मुहणौत नैणसी की मारवाड़ रा परगना री विगत अबुल फजल के ‘आइन-ए-अकबरी’ के समान एक प्रशासनिक ग्रंथ हैं। इसलिए नैणसी को अबुल फजल की संज्ञा देना अतिशयोक्ति नहीं है।
❖ मुहणौत नैणसी कुशल शासन प्रबन्धक भी था। उन्होंने परगनों की राजस्व व्यवस्था में सुधार कर उनकी आय बढ़ाने के प्रयास किये। नैणसी महाराजा जसवंतसिंह का विश्वासपात्र था। इसी कारण राजकुमार पृथ्वीसिंह की शिक्षा दीक्षा का जिम्मा भी नैणसी को सौंपा गया।
❖ नैणसी ने दीवान रहते हुए राज्य के उच्च पदों पर अपने रिश्तेदारों की नियुक्तियाँ कर दी थी। जिन्होंने प्रजा पर अत्याचार किए। इससे महाराजा जसवंतसिंह ने नाराज होकर नैणसी को कैद कर लिया और उस पर एक लाख का जुर्माना लगाया गया। इसलिए नैणसी ने 3 अगस्त, 1670 को जेल में आत्म हत्या कर ली।
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