डॉ शांति स्वरूप भटनागर
▪️ डॉ. शांति स्वरूप भटनागर का जन्म 21 फरवरी, 1894 को वर्तमान पाकिस्तान के शाहपुर में हुआ।▪️ वर्ष 1913 में पंजाब यूनिवर्सिटी से इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के पश्चात् उन्होंने लाहौर के फॉरमैन क्रिस्चियन कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ से उन्होंने वर्ष 1916 में बीएससी और 1919 में एमएससी की परीक्षा उत्तीर्ण की।
▪️ स्नातकोत्तर डिग्री पूर्ण करने के उपरांत, शोध फेलोशिप पर, वे इंग्लैण्ड चले गए, जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन से वर्ष 1921 में रसायन शास्त्र के प्रोफेसर फेड्रिक जी. डोन्नान की देखरेख में विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
▪️ अगस्त, 1921 में वे भारत वापस आए और उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में रसायन शास्त्र के प्रोफेसर के तौर पर तीन साल तक अध्यापन कार्य किया।
▪️ उन्होंने लाहौर के पंजाब विश्वविद्यालय में ‘फिजिकल केमिस्ट्री’ के प्रोफेसर के साथ-साथ विश्वविद्यालय की रासायनिक प्रयोगशालाओं के निदेशक के तौर पर काम किया।
▪️ उन्होंने इमल्सन, कोलायड्स और औद्योगिक रसायन शास्त्र पर कार्य के अतिरिक्त ‘मैग्नेटो-केमिस्ट्री’ के क्षेत्र में अहम योगदान दिया। वर्ष 1928 में उन्होंने के.एन. माथुर के साथ मिलकर ‘भटनागर-माथुर मैग्नेटिक इन्टरफेरेंस बैलेंस’ का प्रतिपादन किया।
▪️ वे वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) के संस्थापक निदेशक थे तथा भटनागर को CSIR की 12 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की स्थापना करने का श्रेय दिया जाता है।
▪️ उन्हें ‘ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एम्पायर’ (OBE) से सम्मानित किया गया था।
▪️ वर्ष 1941 में उन्हें ‘नाइट’ की उपाधि दी गई और वर्ष 1943 में उन्हें रॉयल सोसाइटी, लंदन का फेलो चुना गया।
▪️ स्वातंत्र्योत्तर भारत सरकार में कई महत्त्वपूर्ण पदों पर रहते हुए उन्होंने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अवसंरचना के निर्माण और भारत की विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी नीतियों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
▪️ डॉ. शांति स्वरूप भटनागर ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ (UGC) के पहले अध्यक्ष थे।
▪️ उन्होंने ‘नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कारपोरेशन’ (एनआरडीसी) की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। एनआरडीसी की भूमिका शोध एवं विकास के बीच अंतर को समाप्त करने से संबंधित रही है।
▪️ वर्ष 1954 में भारत सरकार ने डॉ शांति स्वरूप भटनागर को विज्ञान एवं अभियांत्रिकी क्षेत्र में अहम योगदान के लिए पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया।
▪️ 1 जनवरी, 1955 को दिल का दौरा पड़ने के कारण डॉ शांति स्वरूप भटनागर की मृत्यु हो गई।
▪️ उनके मरणोपरांत वर्ष 1957 में सी.एस.आई.आर. ने उनके सम्मान में ‘शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार’ की घोषणा की, जो विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले वैज्ञानिकों को दिया जाता है।
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