खान अब्दुल गफ्फ़ार खान
⬧ खान अब्दुल गफ्फ़ार खान का जन्म 6 फरवरी, 1890 को पेशावर, तत्कालीन ब्रिटिश भारत (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था।⬧ ये ‘सीमांत गाँधी’ के नाम से विख्यात थे।
⬧ राजनीतिक असंतुष्टों को बिना मुकदमा चलाए नज़रबंद करने की इजाजत देने वाले रॉलेट एक्ट के खिलाफ वर्ष 1919 में हुए आंदोलन के दौरान गफ्फ़ार खान की गाँधी जी से मुलाकात हुई तथा उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया।
⬧ वे ख़िलाफ़त आंदोलन में शामिल हो गए, जो तुर्की के सुल्तान के साथ भारतीय मुसलमानों के आध्यात्मिक संबंधों के लिए प्रयासरत था तथा वर्ष 1921 में वह अपने गृह प्रदेश पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत में ख़िलाफ़त कमेटी के जिला अध्यक्ष चुने गए।
⬧ वर्ष 1929 में कांग्रेस पार्टी की एक सभा में शामिल होने के बाद गफ्फ़ार खान ने ख़ुदाई ख़िदमतगार (ईश्वर के सेवक) की स्थापना की और पख़्तूनों के बीच लाल कुर्ती आंदोलन का आह्वान किया।
⬧ मुस्लिम लीग ने जहाँ पख़्तूनों को इस आन्दोलन के लिए कोई मदद नहीं दी, वहीं कांग्रेस ने उन्हें अपना पूर्ण समर्थन दिया। अतः वे पक्के कांग्रेसी बन गए और यहीं से वे गाँधी जी के अनुयायी के रूप में प्रतिष्ठित होते चले गए।
⬧ खान ने पठानों को गाँधी जी का ‘अहिंसा’ का पाठ पढ़ाया।
⬧ पेशावर में जब वर्ष 1919 में अंग्रेजों ने ‘फौजी कानून’ (मार्शल लॉ) लगाया तब अब्दुल गफ्फ़ार खान अंग्रेजों के सामने शांति का प्रस्ताव रखा, फिर भी उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
⬧ वर्ष 1930 में सत्याग्रह करने पर वे पुन: जेल भेजे गए और उन्हें गुजरात (उस समय पंजाब का भाग) की जेल भेजा गया। वहाँ पंजाब के अन्य बंदियों से उनका परिचय हुआ। उन्होंने जेल में सिख गुरुओं के ग्रंथ पढ़े और गीता का अध्ययन किया।
⬧ हिंदू-मुस्लिम एकता को जरूरी समझकर उन्होंने गुजरात की जेल में गीता तथा क़ुरान की कक्षा लगवाई, जहाँ योग्य संस्कृतज्ञ और मौलवी संबंधित कक्षा को चलाते थे। उनकी संगति से सभी प्रभावित हुए और गीता, क़ुरान तथा गुरु ग्रंथ साहिब आदि सभी ग्रंथों का अध्ययन किया।
⬧1930 के दशक के उत्तरार्द्ध तक गफ्फ़ार खान महात्मा गाँधी के निकटस्थ सलाहकारों में से एक हो गए और वर्ष 1947 में भारत का विभाजन होने तक ख़ुदाई ख़िदमतगार ने सक्रिय रूप से कांग्रेस पार्टी का साथ दिया ।
⬧ वर्ष 1930 के गाँधी-इरविन समझौते के बाद अब्दुल गफ्फ़ार खान को छोड़ा गया और वे सामाजिक कार्यों में लग गए।
⬧ वर्ष 1937 के प्रांतीय चुनावों में कांग्रेस ने पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत की प्रांतीय विधानसभा में बहुमत प्राप्त किया। खान साहब को पार्टी का नेता चुना गया और वह मुख्यमंत्री बने।
⬧ वर्ष 1942 के अगस्त आंदोलन में वह गिरफ्तार किए गए और वर्ष 1947 में छूटे।
⬧ इन्होंने बँटवारे का खुलकर विरोध करते हुए कहा था गाँधीजी से कि “आप हमें भेड़ियों के बीच क्यों जाने दे रहे हैं?”
⬧ इस पर गाँधी के पास कोई जवाब नहीं था। आखिरी बार बापू से मिले तो बापू ने खान से कहा “अब भारत का मोह त्याग दो, अपने देश की सेवा करो।“
वह पाकिस्तान में ज्यादातर जेल ही में रहे।
⬧ देश के विभाजन के विरोधी गफ्फ़ार खान ने पाकिस्तान में रहने का निश्चय किया, जहाँ उन्होंने पख़्तून अल्पसंख़्यकों के अधिकारों और पाकिस्तान के भीतर स्वायत्तशासी पख़्तूनिस्तान (या पठानिस्तान) के लिए लड़ाई जारी रखी।
⬧ भारत का बँटवारा होने पर उनका संबंध भारत से टूट-सा गया, किंतु वह भारत के विभाजन से बिल्कुल सहमत न थे। पाक़िस्तान से उनकी विचारधारा सर्वथा भिन्न थी। पाकिस्तान के विरुद्ध ‘स्वतंत्र पख़्तूनिस्तान आंदोलन’ आजीवन चलाते रहे।
⬧ सीमान्त गाँधी वर्ष 1969 में भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के विशेष आग्रह पर इलाज के लिए भारत आए। हवाई अड्डे पर उन्हें लेने श्रीमती गाँधी और जे.पी. नारायण गए। खान जब हवाई जहाज से बाहर आये तो उनके हाथ में एक गठरी थी जिसमें उनका कुर्ता-पजामा था। मिलते ही श्रीमती गाँधी ने हाथ बढ़ाया उनकी गठरी की तरफ – “इसे हमें दीजिये, हम ले चलते हैं ”खान साहब ठहरे, बड़े ठंडे मन से बोले – “यही तो बचा है, इसे भी ले लोगी?”
⬧ उनका संस्मरण ग्रंथ ‘माई लाइफ़ एण्ड स्ट्रगल’ वर्ष 1969 में प्रकाशित हुआ।
⬧ वर्ष 1985 के ‘कांग्रेस शताब्दी समारोह’ के खान प्रमुख आकर्षण का केंद्र थे।
⬧ खान अब्दुल गफ्फ़ार खान को वर्ष 1987 में भारत सरकार की ओर से ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
⬧ वर्ष 1988 में पाक़िस्तान सरकार द्वारा उन्हें पेशावर में उनके घर में नज़रबंद कर दिया गया।
⬧ 20 जनवरी, 1988 को उनकी मृत्यु हो गई तथा उनकी अंतिम इच्छानुसार उन्हें जलालाबाद, अफ़ग़ानिस्तान में दफ़नाया गया।
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