Monday, January 30, 2023

 महाराणा सांगा (संग्रामसिंह)

● पिता :- इनके पिता का नाम महाराणा रायमल था जो कि महाराणा कुम्भा के पुत्र व मेवाड़ के राजपूत शासक थे।
● माता :- इनकी माता का नाम महारानी रतन कंवर था।
जन्म :- महाराणा सांगा का जन्म वैशाख बदी नवमी विक्रम संवत् 1539 (22 अप्रैल, 1482) में हुआ था।
जन्म स्थान :- महाराणा सांगा का जन्म मालवा, राजस्थान में हुआ था।
विवाह :- महाराणा सांगा का विवाह अजमेर के करमचंद पंवार की पुत्री करणावती के साथ हुआ था।
● निर्वाण :- महाराणा सांगा का निर्वाण वि.सं. 1584 (30 जनवरी, 1528) को उत्तर प्रदेश में कालपी के पास एरिच में हुआ।
निर्वाण स्थल :- महाराणा सांगा का दाह संस्कार वीर विनोद के अनुसार बसवा स्थान बताया गया है और अमरकाव्य के अनुसार माण्डलगढ़ स्थान बताया गया है।
● वंशज :- महाराणा सांगा सिसोदिया राजपूत वंश के महाप्रतापी महाराणा कुम्भा के पौत्र थे तथा महाराणा रायमल के छोटे पुत्र थे।
चारित्रिक विषेशताएँ :- महाराणा सांगा ने 1508 से 1528 ई. के बीच शासन किया। महाराणा सांगा उन मेवाड़ी महाराणाओं में से एक थे, जिनका नाम मेवाड़ के ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण भारत के इतिहास में गौरव के साथ लिया जाता है।
● इनके राज्यकाल में मेवाड़ अपने गौरव और वैभव के सर्वोच्च षिखर पर पहुंचा था। तत्कालीन भारत के समस्त राज्यों में से ऐसा कोई भी शासक नहीं था, जो महाराणा सांगा से लोहा ले सके।
● महाराणा सांगा मेवाड़ के राणाओं में सबसे प्रतापी शासक थे और उस समय के सबसे प्रबल क्षत्रिय राजा थे, जिनकी सेवा में अनेक राजा रहते थे।
● महाराणा सांगा एक साम्राज्यवादी व महत्त्वाकांक्षी शासक थे, जो संपूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहते थे। इनके समय में मेवाड़ की सीमा का दूर-दूर तक विस्तार हुआ।
● महाराणा सांगा ने अपने बाहुबल पर विशाल साम्राज्य स्थापित किया। इन्होंने कई युद्ध लड़े। 
● इनको युद्धों में शरीर पर 80 घाव लगे तथा इनकी एक आँख, एक हाथ व एक पैर युद्ध में खराब हो चुके थे, फिर भी इनका साहस अटूट था।
● महाराणा सांगा हिन्दु रक्षक, भारतीय संस्कृति के रखवाले, अद्वितीय योद्धा, कर्मठ, राजनीतिज्ञ, कुशल शासक, शरणागत रक्षक, मातृभूमि के प्रति समर्पित, शूरवीर, दूरदर्शी थे। इनका इतिहास स्वर्णिम है, जिसके कारण आज मेवाड़ के शिरोमणि शासकों में इन्हें जाना जाता है।
● महाराणा सांगा का पूरा जीवन, बचपन से लेकर मृत्युपर्यन्त युद्धों में बीता, नाम के अनुरूप ये जीवनभर संघर्षरत रहे।
जीवन की प्रमुख घटनाएँ :-
1. हारे हुए सुल्तान महमूद को मांडू उपहार में दिया-
मालवा के सुल्तान महमूद द्वितीय को परास्त कर उसे बंधी बनाकर चित्तौड़ लाया गया। महमूद युद्ध में घायल हो गया था, घायल सुल्तान का ईलाज कराने के बाद महाराणा सांगा ने उसे ससम्मान मालवा भिजवा दिया और मांडू उपहार स्वरूप भेंट किया। महाराणा सांगा के इस उदार व्यवहार की मुस्लिम लेखकों ने भी प्रशंसा की है।
2. महमूद खिलजी पर विजय पाने पर केसरिया चारण हरिदास को चित्तौड़ उपहार में दिया-
‘‘मांडव गढ़ गर्जर ग्रह मुके,
रैणवां दीघ चत्रगढ़ राण।’’
3. निज़ाम खाँ को बयाना जागीर में देना - महाराणा सांगा ने बयाना को अपने अधीन कर निज़ाम खाँ को बयाना का जागीरदार नियुक्त किया परन्तु जब बाबर ने इष्क आका के नेतृत्व में बयाना पर आक्रमण किया तो निज़ाम खाँ का भाई आलम खाँ बाबर से मिल गया व किला बाबर को सुपुर्द कर दिया। महाराणा सांगा ने किले को घेर लिया एवं 16 फरवरी, 1527 को मुगल सेना को परास्त कर बयाना पर पुनः अधिकार कर लिया।
4. महाराणा सांगा का खानवा में युद्ध के लिए आ डटना- महाराणा सांगा 13 मार्च, 1527 को बाबर से युद्ध के लिए खानवा पहुँचे। महाराणा सांगा की सेना में रावत रतनसिंह चूण्डावत (सलूम्बर), वीर सिंह व नर्बद हाड़ा (बूँदी), राजा हसन खाँ मेवाती (अलवर), भारमल (ईडर), वीरमदेव, रतनसिंह (मेड़ता), मेदिनीराय (चंदेरी), राव गांगा (मारवाड़), रावल उदयसिंह (डूँगरपुर), रावत जोगा (कानोड़), पृथ्वीराज (आमेर), चन्द्रभान चौहान (मैनपुरी), मानिक चन्द्र चैहान (राजौर-एटा), झाला अज्जा और सज्जा (बड़ी सादड़ी), गौकुलदास परमार (बिजौलिया), रायमल राठौड़ (जोधपुर), रावत बाघसिंह (देवलिया), कुंवर कल्याणमल   (बीकानेर), शत्रुदेव (गागरोन), महमूद लोदी, राजा ब्रह्मदेव, राय दिलीप, रामदास सोनगरा आदि अपनी सेना सहित सम्मिलित थे।

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